ठहरो मेरी बात सुनो ! (सम्बोधन-गीतों का काव्य)(क)‘अन्तरतम’ के प्रति (१) ठहर जा ‘मन-मीत’ मेरे !
>> Tuesday, 7 May 2013 –
गीत(समबोधन-गीत)
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ठहर जा
‘मन-मीत’ मेरे !
सुन तनिक
तो गीत मेरे !!
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गीत क्या, ‘मनुहार’ हैं ये |
‘जगत
के व्यवहार’ हैं ||
‘शब्द-ध्वनि-अर्थों’ से सज्जित-
‘छन्द-मय उपहार’ हैं ये ||
छिपा इनमें ‘आज’ मेरा-
इन में हैं ‘अतीत’ मेरे ||
ठहर जा ‘मन-मीत’ मेरे !
सुन तनिक तो गीत मेरे !!१!!
‘दर्द के परिवाद’ हैं
ये |
‘अनकहे अवसाद’ हैं ये
||
तोड़ कर ‘हर मौन’ उपजे-
हुये ‘कुछ सम्वाद’ हैं
ये ||
‘आयु के पल’ संजोने
में-
इन्हें हुये, व्यतीत मेरे ||
ठहर जा ‘मन-मीत’ मेरे !
सुन तनिक तो गीत मेरे !!२!!
ज्ञात कुछ, अज्ञात हैं कुछ |
दिवस से कुछ, रात से कुछ ||
कुछ ‘कहे वचनों’ से हैं प्रिय-
‘अनकही सी बात’ से कुछ ||
कई कटु, कुछ ‘स्नेह-पूरित’-
‘नीम-रस’,
‘नवनीत’ मेरे |
ठहर जा ‘मन-मीत’ मेरे !
सुन तनिक तो गीत मेरे !!३!!
‘ह्रदय की वीणा’ के सारे |
‘तार’, ‘चिन्तन’ ने टंकारे ||
‘मौन की डोरी’ कसी, ‘स्वर’-
यत्न
से हमने सँवारे ||
बंधा
संयम तोड़ कर के-
ध्वनित हैं
‘संगीत’ मेरे ||
ठहर जा ‘मन-मीत’ मेरे !
सुन तनिक तो गीत मेरे !!४!!
‘मैं’ स्वयं ‘तुझ’ में समाया |
‘दीप्ति’ है ‘तू’, ‘मैं’ हूँ
‘छाया’ ||
जन्म जब भी मिला मुझको-
साथ ‘तू’
ने ही निभाया ||
‘सृष्टि के
आरम्भ’ में ही-
‘तुम’ रहे
‘परिणीत’ मेंरे ||
ठहर जा ‘मन-मीत’ मेरे !
सुन तनिक तो गीत मेरे !!५!!
बाँध ली
‘तूने’ ‘नियति’ है |
‘सहचरी’ ‘तेरी’
‘प्रकृति’ है ||
जो ‘तुझे’ मन
से मना ले-
उसी की
निश्चित प्रगति है ||
‘ह्रदय’ के
केवल ‘तुम्हीं’ तो-
‘स्वामी’ हो,
‘मन-जीत’ मेरे ||
ठहर जा ‘मन-मीत’
मेरे !
सुन तनिक तो गीत मेरे !!६!!
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