गणतन्त्र के उपहार | (गणतन्त्र दिवस पर विशेष कटु सत्य प्रस्तुति)
>> Saturday, 26 January 2013 –
नव गीत
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आओ गिनायें हम तुम्हें ‘गणतन्त्र के
उपहार’ !
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पाँच वर्षों तक ‘प्रतीक्षा’ से जुड़े ‘अनुबन्ध
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वोट पाने के लिये खाई गई सौगन्ध ||
झूठ-छल से भरा कितना ‘चुनावी बाज़ार’ |
बन चुका ‘राजा-प्रजा का प्रेम’ यों ‘व्यापार’
|
आओ गिनायें हम तुम्हें ‘गणतन्त्र के
उपहार’ !!१!!
काटते
‘विशवास’ का ‘सर’ ‘बुद्धिजीवी लोग’ |
और ‘शोषण-जीभ’
से कर ‘रक्त’ का उपभोग ||
हैं वस्त्र के भीतर छुपाये, ‘कपट की
तलवार’ |
कर रहे, ‘बलि-पशु’ कटे ज्यों, ‘आपसी
व्यवहार’ ||
आओ गिनायें हम तुम्हें ‘गणतन्त्र के
उपहार’ !!२!!
मिलें
‘राशन’ की जगह, ‘भाषण के मीठे बोंल |
हर ‘तराजू’
रही है ‘अन्याय’ कितना तोल !!
इन ‘रूपधर बहुरूपियों’ से कौन पाये
पार !
तोलते जो ‘न्याय’, लेते आज डंडी मार
||
आओ गिनायें हम तुम्हें ‘गणतन्त्र के
उपहार’ !!३!!
‘व्यवस्था’
की ‘प्रगति-माला’ हो चुकी अब भंग |
है ‘नीति-डोरी’
से जुड़ी ‘प्रतिघात की पतंग’ ||
हुये, ‘वितरक’ ‘लोभ, तृष्णा-रोग’ से
बीमार |
भूल कर कर्तव्य, सब के ‘हक़’ रहे हैं
मार ||
आओ गिनायें हम तुम्हें ‘गणतन्त्र के
उपहार’ !!४!!
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आज यही आक्रोश है दिलों में ...आपने अच्छी आवाज लगायी..
सच सच हमेशा बहुत कडुवा होता है ...
लोकतंत्र में तंत्र ही तंत्र है ...
.सराहनीय अभिव्यक्ति ..गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें
फहराऊं बुलंदी पे ये ख्वाहिश नहीं रही .
कई ब्लोगर्स भी फंस सकते हैं मानहानि में …….