सभ्यता (एक नवीन तम गीत)
>> Saturday, 27 April 2013 –
यथार्थ गीत
सभ्यता का विकास निर्वस्त्रता से स-वस्त्रता के रूप में हुआ है |यदि अब हम निर्वस्त्रता को अपना रहे हैं तो कैसे कहें कि हम सभ्य हैं ? इस सब्य्ता के परिणाम हम सब देख ही रहे हैं | नग्नता और नशाखोरी के कारण मानव की 'यौन-पिपासा' ने पशुओं को भी पीछे छोड़ दिया है !
(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
मेरे ग्रन्थ 'ठहरो मेरी बात सुनो !' में नयी रचना
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(१५अप्रैल-२०१३
को एक अबोध बालिका से हुये ‘दुष्कर्म’ की प्रतिक्रया)
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‘विधि के
विधान’ की बनायी हुई ‘सभ्यता’ |
विश्व में
‘वरदान’ सी लायी हुई ‘सभ्यता’ ||
ऐसी पड़ी
चोट आज ‘युग के बदलाव’ की-
‘काल के
गाल’ में समायी हुई ‘सभ्यता’ ||
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‘ताप’ सह
लिये गरीब ने ‘जठर की आग’ के |
जल गये हैं ‘वृक्ष’ सारे ‘चाहतों के बाग’ के ||
पजर पजर के
विचारी, देखो ‘राख’ बन गयी-
‘भट्टियों’
में किस तरह तपायी हुई ‘सभ्यता |
‘काल के
गाल’ में समायी हुई
‘सभ्यता’ ||१||
‘नग्नता’ हमारा चलन
है नहीं रहा
कभी |
‘लाज-हीनता’
को हमने है नहीं
सहा कभी ||
हमें ‘पूर्वजों’ ने
‘मरजाद का सबक’
दिया-
विदेशियों
द्वारा यह बतायी
हुई ‘सभ्यता’ |
‘काल के
गाल’ में समायी हुई
‘सभ्यता’ ||२||
‘रूप की जवानी’
कण्टकों से भर गयी कहीं |
‘दहेज़’ के लिये ‘प्रीति’ जल के मर गयी कहीं ||
चढ़ी है भेंट
‘लोभ की सुलग रही अग्नि’ से-
‘पाप की
आग’ में
जलायी हुई ‘सभ्यता’ |
‘काल के
गाल’ में समायी हुई
‘सभ्यता’ ||३||
बालिका-किशोरियों का
रेप कर दिया गया |
‘कौमार्य-“प्रसून’’’ में ‘अंगार’ भर दिया गया ||
‘वहशियों’ की ‘भूख’
की यह शिकार हो गयी-
‘मौत के
आगोश’ में सुलायी हुई ‘सभ्यता’ |
‘कालके
गाल’ में समायी हुई
‘सभ्यता’ ||४||
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waaaaaaaah
वर्तमान घटनाक्रम दुखद है