सामयिकी ज्वालामुखी(एक ओजगुणीय काव्य) में नयी रचनायें ‘(सामयिक परिस्थिति’ में !) (क)देश की दशा | (१) दिल्ली में दरिन्दगी
>> Monday, 22 April 2013 –
गीत(यथार्थ-गीत
(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
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जेठ से अधिक प्रचण्ड ’हृदय’ में धधकी है ‘ज्वाला’ !
‘काल’ ने
अपने ‘आँचल’ में ज्यों किसी ‘आग’ को पाला ||
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‘पीड़ा भरी कराह’ उठ रही, ‘दर्द भरी’ है ‘सिसकी’ |
ऐसी, ‘अमन की देवी’ पर, ‘बदनज़र’ पड़ी है किसकी ??
धीरे धीरे ‘आँसू’ रिसते, ‘नयन’ हो गये गीले-
‘मानवता’ को ‘दर्द’ हुआ ज्यों, दुखा हो कोई ‘छाला’ ||
जेठ से अधिक प्रचण्ड, ’हृदय’ में धधकी है ‘ज्वाला’ !
‘काल’ ने अपने ‘आँचल’ में ज्यों,किसी ‘आग’ को पाला ||१||
डसने को
‘वासना की नागिन’, आई इसे कहाँ से ??
‘संयम’ टूट गया, ‘धीरज’ ने अपनी ‘करवट’ बदली –
लिख न जाये ‘इतिहास’ में ‘खूनी पृष्ठ कोई काला’ ||
जेठ से अधिक प्रचण्ड , ’हृदय’ में धधकी है ‘ज्वाला’ !
‘काल’ ने अपने ‘आँचल’ में ज्यों किसी ‘आग’ को पाला ||२||
अब नारी की ‘सहन-शक्ति’ की ‘बन्धन-डोरी’ टूटी |
‘अबला’ है वह, ‘बात पुरानी’ हुई है सारी झूठी ||
पाकर
‘अतिशय चोट’ हिली है इस ‘धरती’ की काया’-
लगता है, अब ‘प्रलय’ यहाँ पर निश्चय आने वाला ||
बाहर कितनी ‘ठण्ड’, ’हृदय’ में धधकी है ‘ज्वाला’ !
‘
'काल’ ने
अपने ‘आँचल’ में ज्यों ‘आग’ को पाला ||३||
पुरखों ने जो 'बाग' यहाँ थे सुन्दर कई लगाये |
इनमें धोखे से ‘विष वाले’, “प्रसून” कुछ उग
आये ||
इनके ‘ज़हरीलेपन’ से हम कितने हुये विकल
हैं-
जिसने
इनका ‘स्वाद’ चखा है, ‘काल’ का हुआ ‘निवाला’ ||
जेठ से अधिक प्रचण्ड, ’हृदय’ में धधकी है ‘ज्वाला’ !
‘काल’ ने
अपने ‘आँचल’ में ज्यों किसी‘आग’ को है पाला||४||
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परख के लिये धन्यवाद !राम करे ऐसे दानवीय कृत्यकारी राक्षसों को समूल नष्ट करने वाली शक्ति समाज में जागृत हो !!
सराहनीय अभिव्यक्ति जिम्मेदारी से न भाग-जाग जनता जाग" .महिला ब्लोगर्स के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MANजाने संविधान में कैसे है संपत्ति का अधिकार-2
बहुत सुन्दर, मार्मिक और भावनात्मक स्वरुप लिए आपकी रचना बहुत ही सशक्त रूप से प्रस्तुत की गई है | आभार
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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bhot bhub
बहुत भाव पूर्ण सटीक प्रस्तुति
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
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