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सामयिकी ज्वालामुखी(एक ओजगुणीय काव्य) में नयी रचनायें ‘(सामयिक परिस्थिति’ में !) (क)देश की दशा | (१) दिल्ली में दरिन्दगी


 (सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)

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जेठ  से  अधिक  प्रचण्ड  ’हृदय’ में  धधकी  है ‘ज्वाला’ !

‘काल’ ने अपने ‘आँचल’ में ज्यों किसी ‘आग’ को  पाला ||

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‘पीड़ा  भरी  कराह’  उठ  रही,  ‘दर्द  भरी’  है ‘सिसकी’ |

ऐसी, ‘अमन की देवी’  पर,  ‘बदनज़र’ पड़ी है किसकी ??

धीरे   धीरे  ‘आँसू’    रिसते,  ‘नयन’  हो   गये  गीले-

‘मानवता’  को ‘दर्द’  हुआ  ज्यों,  दुखा  हो कोई ‘छाला’ ||

जेठ  से  अधिक  प्रचण्ड,  ’हृदय’  में धधकी है ‘ज्वाला’ !

‘काल’ ने अपने ‘आँचल’ में ज्यों,किसी ‘आग’ को पाला ||१||


 ‘लाज की हिरणी’  तड़फ़  तडफ  कर, लेती ‘अन्तिम साँसें’

डसने  को ‘वासना  की  नागिन’,  आई  इसे  कहाँ से ??

‘संयम’  टूट  गया,  ‘धीरज’  ने  अपनी  ‘करवट’ बदली –

लिख  न  जाये  ‘इतिहास’  में  ‘खूनी पृष्ठ कोई काला’ ||


जेठ  से अधिक  प्रचण्ड , ’हृदय’  में  धधकी है ‘ज्वाला’ !

‘काल’ ने अपने ‘आँचल’ में ज्यों किसी ‘आग’ को पाला ||२||


अब  नारी  की  ‘सहन-शक्ति’  की ‘बन्धन-डोरी’ टूटी |

‘अबला’  है  वह,  ‘बात पुरानी’  हुई  है  सारी झूठी ||

पाकर ‘अतिशय चोट’ हिली है इस ‘धरती’ की काया’-

लगता है,  अब ‘प्रलय’ यहाँ पर निश्चय आने वाला ||

बाहर कितनी  ‘ठण्ड’,  ’हृदय’  में  धधकी है ‘ज्वाला’ !
'काल’ ने अपने ‘आँचल’ में ज्यों ‘आग’ को  पाला ||३||


पुरखों  ने  जो  'बाग'  यहाँ  थे सुन्दर कई लगाये |

इनमें  धोखे  से  ‘विष वाले’, “प्रसून” कुछ उग आये ||

इनके  ‘ज़हरीलेपन’  से  हम  कितने  हुये  विकल हैं-

जिसने इनका ‘स्वाद’ चखा है, ‘काल’ का हुआ ‘निवाला’ ||

जेठ  से  अधिक  प्रचण्ड,  ’हृदय’ में धधकी है ‘ज्वाला’ !

‘काल’ ने अपने ‘आँचल’ में ज्यों किसी‘आग’ को है पाला||४||


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देवदत्त प्रसून  – (22 April 2013 at 09:20)  

परख के लिये धन्यवाद !राम करे ऐसे दानवीय कृत्यकारी राक्षसों को समूल नष्ट करने वाली शक्ति समाज में जागृत हो !!

Shalini kaushik  – (22 April 2013 at 11:38)  

सराहनीय अभिव्यक्ति जिम्मेदारी से न भाग-जाग जनता जाग" .महिला ब्लोगर्स के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MANजाने संविधान में कैसे है संपत्ति का अधिकार-2

Tamasha-E-Zindagi  – (25 April 2013 at 18:37)  

बहुत सुन्दर, मार्मिक और भावनात्मक स्वरुप लिए आपकी रचना बहुत ही सशक्त रूप से प्रस्तुत की गई है | आभार

कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page

कालीपद "प्रसाद"  – (26 April 2013 at 01:17)  

बहुत भाव पूर्ण सटीक प्रस्तुति
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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