सामयिकी ज्वालामुखी(एक ओजगुणीय काव्य) में नयी रचनायें ‘(सामयिक परिस्थिति’ में !) (क)देश की दशा (२) हमारी दिल्ली !
>> Wednesday, 24 April 2013 –
गीत(प्रतीक-दोहा गीत)
(१५ अप्रैल २०१३ कियो छोई सी पांच वर्षीय बच्ची से सामूहिक बलात्कार की घटना पर
खून के दो आँसू)
(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
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उफ़ ! कितनी ‘नाकाम’ हो गयी, आज हमारी
दिल्ली है !
दुनियाँ में बदनाम हो
गयी, पुन: हमारी
दिल्ली है !!
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‘यौवन’ मिला ‘सृजन’ करने को, इस को किया कलंकित क्यों ?
‘शैशव’ के ‘भोलेपन’ पर हा ! ‘पाप’ किया है
अंकित क्यों ??
‘पापी पिशाच’ ने
‘पापों की ‘सारी
सीमायें’ लांघीं-
‘पावन बचपन’ ‘मैला’
कर के उसे किया
आतंकित क्यों ??
‘कलि-मल-मलिन’ ‘महापशु’ ने यह
किया घिनौना काम बड़ा-
‘भारतीय संस्कृति’ की
जग में, उड़ी आज क्यों खिल्ली है ?
दुनियाँ में बदनाम हो
गयी, पुन: हमारी
दिल्ली है !!१!!
‘धूर्त-कुपूत’ ने ‘गन्दी
नाली’ में ‘निज कुल’ को डुबा दिया
|
‘पापी’ ने
‘मलवे’ के नीचे,
‘मानवता’ को दबा
दिया ||
ज्यों ‘बौराये सुअर’ ने ‘कोमल कमल-कली’ को कुचल कुचल-
अपनी ‘मैली दाढों’ में हो, बेदर्दी से चबा लिया ||
‘अखिल व्यवस्था’ बाग की‘ बैठी धरे हाथ पर हाथ है क्या ?
कितनी ‘ढीली ढाली’ ‘सुस्ती’ ओढ़े हुये ‘निठल्ली’ है |
दुनियाँ में बदनाम हो गयी, पुन: हमारी दिल्ली है !!२!!
‘आग लगे’
इससे पहले तुम, ‘भडकी ज्वाल’ बुझाओ
तो !
‘सत्ता-केन्द्र’ में
भी ऐसा, होता
क्यों समझाओ तो !!
‘पैनी नज़र’ अगर नहीं ‘राजा’ की, ‘प्रजा’ सुरक्षित कैसे हो ?
कहाँ ‘कमी’ है ‘कारकुनों’ में, जा कर तनिक मंझाओ तो !!
‘विफल व्यवस्था’ ठीक करो तुम, यह न कभी हितकारी है !
‘रेशम के शाही लिवास’ में, लगी ‘टाट की टल्ली’ है |
दुनियाँ में बदनाम हो गयी, पुन: हमारी दिल्ली है !!३!!
‘इन्द्रप्रस्थ’ में ‘इन्द्र’ के सम्मुख,
सिर पर ‘नंगा नाच’ हुआ |
‘भारत
की सुकुमार संस्कृति’ का हा
! ‘दलन-विनाश’ हुआ ||
कैसे कहूँ लाज आती है, इन ‘घटिया घटनाओं’ पर-
‘मल की आहुति’ पड़ी ‘हवन’ में, ज्यों ‘मैला’ ‘आकाश’ हुआ ||
“प्रसून” के पौधों पर मानों, बिजली गिरी विनष्ट हुये-
जलीं ‘कोंपलें, भावुकता की’, पजरी ‘कल्ली कल्ली’ है |
दुनियाँ में बदनाम हो गयी, पुन: हमारी दिल्ली है !!४!!
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