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मुकुर(यथार्थवादी त्रिगुणात्मक मुक्तक काव्य)(छ)चोरों का संसार l(२)चोरी की दुनियाँ



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यह तो दुनियाँ है ‘चोरी’ की |
चोरी, फिर ‘सीनाजोरी’ की ||
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‘शोषण के कुचक्र’ रच रच कर |
‘सब की नज़रों’ से बच बच कर ||
‘नैतिक तल’ से नीचे गिर कर |
कुछ ‘खटमल’, ‘लोहित’ पी पी कर ||
यहाँ ‘प्राण चुराते हैं देखो !
‘सुख-चैन’ चुराते हैं देखो !!
यह दुनियाँ ‘फोकट खोरी’ की |
यह तो दुनियाँ है ‘चोरी’ की ||१||

‘चालाकी’ से या फिर ‘छल’ से |
‘जन-बल’,’धन-बल’या ‘तन-बल’ से ||
कभी ‘एकल’,कभी ‘दल-बल’ से ||
हर रोज़ अधिक ‘बीते कल’ से |
कभी ‘दाम’ चुराते हैं देखो !
‘गोदाम’ चुराते हैं देखो !!
‘अगवाई’, ‘छोरा-छोरी’ की |
यह तो दुनियाँ है ‘चोरी’ की ||२||

‘मक्कारी’ या ‘चालाकी’ से |
छुप कर, या ‘ताकाझाँकी’ से ||
कर ‘फरेब’ या ‘बेबाकी’ से |
‘गाफ़िल’ हुई, ‘रूप की साकी’ के ||    
‘तन-बदन’ चुराते हैं देखो !
‘आचरण’ चुराते हैं देखो !!
चुर जाती, ‘अस्मत’ गोरी की |
यह तो दुनियाँ है ‘चोरी’ की ||३||
‘व्यापारों’ में है ‘कर’ चुरते |
हैं ‘फोनों के नम्बर’ चुरते ||
औ हैं ‘बैलेट-पेपर’ चुरते |
‘कम्पनियों के रैपर’ चुरते ||
‘इंसान’ चुराते हैं देखो !
‘हैवान’ चुराते हैं देखो !!
किसने न यहाँ पर ‘चोरी’ की |
यह तो दुनियाँ है ‘चोरी’ की ||४||

‘धन्धों’ की चोरी होती है |
‘ज़िन्दों’ की चोरी होती है ||
‘मुर्दों’ की चोरी होती है |
‘गुर्दों’ की चोरी होती है ||
‘कमज़ोर’ चुराते हैं देखो !
‘पुरज़ोर’ चुराते हैं देखो !!
यह दुनियाँ है ‘बरज़ोरी’ की |
यह तो दुनियाँ है ‘चोरी’ की ||५||


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