मुकुर(यथार्थवादी त्रिगुणात्मक मुक्तक काव्य)(छ)चोरों का संसार l (४)किसे चोर कहें ?(व्यंग्योक्ति-वक्रोक्ति)
>> Saturday, 24 November 2012 –
गीत(व्यंग्य-गीत)
पिछली तीनों रचनाओं का समाधान है इस एक रचना में |जो सब को चोर कहते नहीं अघाते हैं उन्हें करारा उत्तर दिया है, इस गीत में | (सारे चित्र 'गूगल-खोज से साभार)
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दुनियाँ में किसे हम ‘चोर’ कहें-
हम किस को ‘साहूकार’ कहें !
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‘ईश्वर’ की ‘लीला’ है देखो-
‘कान्हां’ ने चुराया था ‘माखन’
|
‘बादल’ का लगा कर के ‘पर्दा’-
‘रोशनी’ चुराता है ‘सावन’ ||
नित ‘रात’ चुराती है ‘सूरज’-
‘रजनी’ हरती, ‘दिन के प्रहसन’ |
तचते हर ‘जेठ के मौसम’ में-
चुर जाते ‘कोकिल के कूजन’ ||
तुम चुरा के ‘कुछ’ ले जाते हो-
तुम्हें ‘चोर’ किस तरह यार कहें !!
दुनियाँ में किसे हम ‘चोर’ कहें-
हम किस को ‘साहूकार’ कहें !!१!!
‘अस्मत के
बसेरे’, ‘सुन्दर तन’-
‘हर शाम’
चुराये जाते हैं |
औ ‘लज्जा के
मोती’, ‘होठों-
के जाम’
चुराये जाते हैं ||
चालाकी से
चुपके ‘जेबों-
के दाम’
चुराये जाते हैं ||
‘मेहनत के
फ़रिश्तों’ के ‘श्रम के-
अंजाम’
चुराये जाते हैं ||
जिस को देखो, वह ‘चोर’-
किसी को चोर यहाँ बेकार कहें ||
दुनियाँ में किसे हम ‘चोर’ कहें-
हम किस को ‘साहूकार’ कहें !!२!!
‘डुप्लीकेटों की दुनियाँ’ में-
‘ऐक्टर की सूरत’ चुरती है |
‘मन्दिर’ में सोने- चाँदी की-
‘भगवान की मूरत’ चुरती है ||
कुछ तो चुरती है ‘ज़रुरत’ में-
कुछ ‘गैर ज़रूरत’ चुरती है |
‘संगीत’, ‘गीत’, ‘कविता’ औ ‘कला’-
की ‘इशरत-शोहरत’ चुरती है ||
हैं ‘चोर’ कई ‘नामी’ जिन को-
‘नायक’, ‘सारा संसार’ कहे ||
दुनियाँ में किसे हम ‘चोर’ कहें-
हम किस को ‘साहूकार’ कहें !!३!!
‘ऊँचे रिश्तों’ की आड़ में अब-
‘नौकरियाँ’ चुरतीं, ‘आये दिन’ |
‘ऊँचे लोगों’ को खुश करने-
‘छोकरियाँ’ चुरतीं, ‘आये दिन’ ||
‘रंगीन मिजाजों’ द्वारा कुछ-
‘सुन्दरियाँ’ चुरतीं, ‘आये दिन’ |
‘तितलियों’ से ‘सुन्दर पर’ ओढ़े-
कुछ ‘परियाँ’ चुरतीं, ‘आये दिन’ ||
जो ‘चोर’ नहीं हैं, उन का अब-
कैसे होगा ‘उद्धार’, कहें !!
दुनियाँ में किसे हम ‘चोर’ कहें-
हम किस को ‘साहूकार’ कहें !!४!!
‘शतरंज
के माहिर’, ‘बिसात’ में-
‘गोटों’
की ‘चोरी’ करते हैं |
कुछ
‘सफ़ेद कपड़े’ पहन-पहन-
‘वोटों’
की चोरी करते हैं ||
कुछ,
‘घर-घर’ जा कर ‘रातों’ में-
‘नोटों
की चोरी’ करते हैं |
यहाँ
‘बड़े चोर’ सब, अपनों से-
’छोटों’
की चोरी करते हैं ||
हर ‘बड़े शहर’ में खुले कई-
जिन को सब ‘चोर बज़ार’ कहें ||
दुनियाँ में किसे हम ‘चोर’ कहें-
हम किस को ‘साहूकार’ कहें !!५!!
फिर काफ़ी बड़े
‘सिकन्दर’ हैं-
‘दिल के कुछ
खोटे चोर’ यहाँ |
‘चोरी से’ पी
कर ‘रक्त’ हुये-
‘थुलथुल’ कुछ
‘मोटे चोर’ यहाँ ||
कुछ ‘पैसों’
की, ‘क़ानून’ की कुछ-
लेते हैं
‘ओटें’, ‘चोर’ यहाँ |
उफ़ ! ‘दुखियों’
पर, ‘बेचारों’ पर-
‘करते हैं
चोटें’, ‘चोर’ यहाँ ||
इन ‘चोरों’ के सहते हैं ‘जुल्म’-
किस से जा कर, ‘लाचार’ कहें !!
दुनियाँ में किसे हम ‘चोर’ कहें-
हम किस को ‘साहूकार’ कहें !!६!!
‘धरती माँ’ के
‘तन’ के सुन्दर-
यहाँ ‘वेश’
चुराये जाते हैं |
हरे-भरे, ‘वन रूपी’, ‘मोहक-
केश’ चुराये
जाते हैं ||
‘प्रकृति’ के,
‘सुभग, सुखद, स्वर्गिक-
परिवेश’ चुराये
जाते हैं |
‘छल-प्रपन्च’
से कुछ ‘गोपनीय-
सन्देश’ चुराये
जाते हैं ||
जब ‘हर चोरी’ है ‘सरकारी’-
इसे कैसे ‘अत्याचार’ कहें !!
दुनियाँ में किसे हम ‘चोर’ कहें-
हम किस को ‘साहूकार’ कहें !!७!!
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