जून २०१३ के बाद की गज़लें (२) न कर
>> Sunday, 31 August 2014 –
गज़ल
(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
‘प्रेम-नगरिया’ में रहता है तू, नफ़रत
की बात न कर !
‘कपट-मैल’ से मैले, दिल के ये ‘उजले जज्वात न कर !!
हिम्मत कर तू सच कहने की, हमें खुदा ने ताक़त दी-
लड़ना है, दरवाज़े पर आ, पिछवाड़े से घात न कर !!
उल्लू नहीं, आदमी है तू, छोड़ ‘अँधेरा
दौलत का’-
अच्छे भले उजाले वाले दिन को ‘काली रात’ न कर !!
दिल के बदले दिल मिलता है, ‘उल्फ़त के बाज़ारों’ में-
दुनियाँ की इस दौलत’ के ‘खोटे सिक्कों’ की बात न कर !!
‘कहर के बादल’ अभी हटे हैं, ‘मौत’ यहाँ बरसाई है-
फिर मौसम को ठगने वाली, वह ‘खूनी बरसात’ न कर !!
सत्संगों के नाम पे बँटते ‘मंत्र’
कभी ‘शैतानों’ के-
‘अन्ध भगत’ बन हर ‘वाणी’ को मन में आत्मसात कर !!
“प्रसून” कह तू नाप- तोल कर, ‘बड़बोलेपन’ में है क्या-
तेरे झूठ की पोल खुले जो, ऐसी कोई बात न कर !!
बहुत सुंदर ।