जून २०१३ के बाद की गज़लें (१) करता है
>> Saturday, 30 August 2014 –
गज़ल
(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
मेरी साफ़बयानी की तू लोक
हँसाई करता है |
कलम उगलती सच्चाई की तू रुसवाई करता है ||
‘खीरा कडवे मुख वाला है’, कह कर कद मत छोटा कर !
शीश कटा कर के भी वह सेहत अफज़ाई करता है ||
तेरी आलोचना, खुशामद का हम करें भरोसा क्या?
गर्ज़ पड़े पर बेमतलब की खूब बड़ाई करता है ||
‘दिल की किताब’ पढ़ ले जिस में, सारे शब्द हैं उल्फ़त के-
भारी पुस्तक हाथ में ले कर, व्यर्थ पढाई करता है ||
हो जायें दीदार खुदा के, तू चाहे ‘मन-मन्दिर’ में-
बेमौसम क्यों ‘पर्वत पर्वत’ व्यर्थ चढाई करता है ??
पीछे मुड़ कर देख, चला है, कौन तेरे पद-चिन्हों पर ?
अक्ल फिरी जो मण्डूकों की तू अगुवाई करता है ||
कैसे खिलें “प्रसून” गुलाबों के बागों में सोच ज़रा--
झरबेरी के बीजों की तू आज बुवाई करता है ||
बढ़िया :)