चुनाव की शंख-ध्वनि ! (आगामी लोक सभा के चुनावों के संधर्भ में विशेष) (१)सोच–समझ कर देना ‘वोट’ !
>> Friday, 28 March 2014 –
गीत (पीयूषवर्षी गीत)
मित्रों !आइये कुछ दिन चुनाव चर्चा हों जाये ! कुछ रचानायें दूषित चुभती क्न्तीकी राजनीति पर रचनायें प्रस्तुत हैं !
(सारे चित्र 'गूगल-खोज'से साभार)
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
(१)सोच–समझ कर देना ‘वोट’ !
‘असली-नक़ली’, ‘सच्चे-झूठे’ छाँट-फटक कर देना ‘वोट’ !
ओ भारत की ‘भोली जनता’ ! सोच-समझ’ कर देना ‘वोट’ !!
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
‘कुनबा-परस्त’,अपने
‘कुल’ को, लगे ‘सींचने’ में हैं जों !
‘हाथ’ बढ़ा
कर, ‘पी.एम्.-कुर्सी’, लगे ‘खींचने’ में हैं जो !!
भली भाँति
पहँचान उन्हें अब, ‘अक्ल’ लगा कर देना ‘वोट’ !
समझ के
‘अच्छा-बुरा’ ‘स्वयं’ की, ‘बुद्धि’ जगा कर देना ‘वोट’ !!
‘विश्लेषण’
की सोई ‘शक्ति’ तनिक जगा कर कर देना ‘वोट’ !
ओ भारत की ‘भोली जनता’ ! सोच-समझ’ कर देना ‘वोट’ !!१!!
‘राजनीति’ की
बिछा के ‘चौपड़’, डाल ‘धर्म’ के जों ‘ पाँसे’ !
‘जातिवाद’ के
‘जाल’ बिछा कर, ‘वोट’ के ‘पँछी’ जों ‘फाँसे’!!
उसके ‘झाँसे’
में फँसना, और न खोना अपना ‘वोट’ !
‘मूल्यवान’ है
समझो भय्या, खरा है ‘सोना’ अपना ‘वोट’ !!
‘मलवे-कीचड़’ में गिर जाये, नहीं सँभल कर देना ‘वोट’ !
ओ भारत की ‘भोली जनता’ ! सोच-समझ’ कर देना ‘वोट’ !!२!!
‘भ्रष्टाचार’
बढ़ाकर जिसने, ‘जनता’ को ‘अधमरा’ किया !
‘दुराचार’ की
पाल ‘ततैयाँ’ उन्हें ‘बढ़ावा’ सदा दिया !!
भरे ‘खज़ाना’,
‘नग्नवाद’ को, खुल कर खूब ‘बढ़ावा’ दे !
‘छलिया’
‘धर्म-महन्तों’ को जों, ‘मक्खन-सना’ ‘चढ़ावा’ दे !!
ऐसे ‘नेता’ के कद’ का अब, सही ‘वज़न’ कर देना ‘वोट’ !
ओ भारत की ‘भोली जनता’ ! सोच-समझ’ कर देना ‘वोट’ !!३!!
‘उलूक-वाहन’ मोटे-मोटे, ‘लक्ष्मी’ के ‘लालों’ से मिल !
‘जनता’ के ‘तन’ चुभने वाली, ‘काँटों’ की ‘डालों’ से मिल !!
‘महँगाई’-‘नागिन’को ‘मीठा दूध’ पिलाने वालों को !
हुईं ‘अधमरी’ ‘जोंकें’, उनको, पुन: ‘जिलाने वालों को !!
उन्हें सके ‘पहँचान’ कि अपनी, ‘सोच’ बदल कर देना ‘वोट’ !
ओ भारत की ‘भोली जनता’ ! सोच-समझ’ कर देना ‘वोट’ !!४!!
करें ‘ज़मीन’
‘अमन’ की ‘खोखल’, जों ‘बिज्जू’ आतंकों के !
‘ज़माखोर चूहे’
जो करते, गहरे ‘छेड़’ ‘कलंकों’ के !!
इनको ‘पाले
‘आँचल’ में जों, अब ऐसी ‘सरकार’ न हों !
मत उनको देना
अपना ‘मत’, जों ‘सपने’ साकार न् हों !!
‘करवट’बदले, ‘युग’ तुम ऐसा ‘स्वस्थ मनन’ कर देना ‘वोट’ !
ओ भारत की ‘भोली जनता’ ! सोच-समझ’ कर देना ‘वोट’ !!५!!
=========================
(मेरे ब्लॉग 'साहित्य प्रसून' पर भी पधारें !)
(मेरे ब्लॉग 'साहित्य प्रसून' पर भी पधारें !)
बहुत खूब :)
बहुत सुन्दर सुझाव कविता के माध्यम से
लेटेस्ट पोस्ट कुछ मुक्तक !
जनता तो सोच समझ कर वोट देती है
जीतने वाले अपनी नियत बदल नियति बादल देते हैं
उनपर अंकुश लगे तो कुछ बात बने