गणतंत्र-दिवस((मेरे एक गीत काव्य 'ठहरो मेरी बात सुनो' से)
>> Saturday, 25 January 2014 –
सम्बोध गीत
(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
सभी मित्रों को गणतन्त्र-दिवस की पूर्व संध्या की दिल से वधाई !
सभी मित्रों को गणतन्त्र-दिवस की पूर्व संध्या की दिल से वधाई !
(१)गणतन्त्र के उपहार | ================
आओ गिनायें हम तुम्हें ‘गणतन्त्र के
उपहार’ !
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पाँच वर्षों तक ‘प्रतीक्षा’ में जुड़े
‘अनुबन्ध |
वोट पाने के लिये खाई गई सौगन्ध ||
झूठ-छल से भरा कितना ‘चुनावी बाज़ार’ |
बन चुका ‘राजा-प्रजा का प्रेम’ यों
‘व्यापार’ ||
आओ गिनायें हम तुम्हें ‘गणतन्त्र के
उपहार’ !!१!!
काटते
‘विशवास’ का ‘सर’ ‘बुद्धिजीवी लोग’ |
और
‘शोषण-जीभ’ से कर ‘रक्त’ का उपभोग ||
हैं वस्त्र के भीतर छुपाये, ‘कपट की
तलवार’ |
कर रहे, ‘बलि-पशु’ कटे ज्यों, ‘आपसी
व्यवहार’ ||
आओ गिनायें हम तुम्हें ‘गणतन्त्र के
उपहार’ !!२!!
मिलें
‘राशन’ की जगह, ‘भाषण के मीठे बोंल |
हर
‘तराजू’ रही है ‘अन्याय’ कितना तोल !!
इन ‘रूपधर बहुरूपियों’ से कौन पाये
पार !
तोलते जो ‘न्याय’, लेते आज डंडी मार
||
आओ गिनायें हम तुम्हें ‘गणतन्त्र के
उपहार’ !!३!!
‘व्यवस्था’
की ‘प्रगति-माला’ हो चुकी अब भंग |
है
‘नीति-डोरी’ से जुड़ी ‘प्रतिघात की पतंग’ ||
हुये, ‘वितरक’ ‘लोभ, तृष्णा-रोग’ से
बीमार |
भूल कर कर्तव्य, सब के ‘हक़’ रहे हैं
मार ||
आओ गिनायें हम तुम्हें ‘गणतन्त्र के
उपहार’ !!४!!
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बहुत समसामयिक रचना...आज के यथार्थ का बहुत सुन्दर और सटीक चित्रण...गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें...