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गणतंत्र-दिवस((मेरे एक गीत काव्य 'ठहरो मेरी बात सुनो' से)

(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
सभी मित्रों को गणतन्त्र-दिवस की पूर्व संध्या की दिल से वधाई !
(१)गणतन्त्र के उपहार | ================
आओ गिनायें हम तुम्हें ‘गणतन्त्र के उपहार’ !
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पाँच वर्षों तक ‘प्रतीक्षा’ में जुड़े ‘अनुबन्ध |
वोट पाने के लिये खाई गई सौगन्ध ||
झूठ-छल से भरा कितना ‘चुनावी बाज़ार’ |
बन चुका ‘राजा-प्रजा का प्रेम’ यों ‘व्यापार’ ||
आओ गिनायें हम तुम्हें ‘गणतन्त्र के उपहार’ !!१!!
काटते ‘विशवास’ का ‘सर’ ‘बुद्धिजीवी लोग’ |
और ‘शोषण-जीभ’ से कर ‘रक्त’ का उपभोग ||
हैं वस्त्र के भीतर छुपाये, ‘कपट की तलवार’ |
कर रहे, ‘बलि-पशु’ कटे ज्यों, ‘आपसी व्यवहार’ ||
आओ गिनायें हम तुम्हें ‘गणतन्त्र के उपहार’ !!२!!
मिलें ‘राशन’ की जगह, ‘भाषण के मीठे बोंल |
हर ‘तराजू’ रही है ‘अन्याय’ कितना तोल !!


इन ‘रूपधर बहुरूपियों’ से कौन पाये पार !
तोलते जो ‘न्याय’, लेते आज डंडी मार ||
आओ गिनायें हम तुम्हें ‘गणतन्त्र के उपहार’ !!३!!
‘व्यवस्था’ की ‘प्रगति-माला’ हो चुकी अब भंग |
है ‘नीति-डोरी’ से जुड़ी ‘प्रतिघात की पतंग’ ||



हुये, ‘वितरक’ ‘लोभ, तृष्णा-रोग’ से बीमार |
भूल कर कर्तव्य, सब के ‘हक़’ रहे हैं मार ||
आओ गिनायें हम तुम्हें ‘गणतन्त्र के उपहार’ !!४!!

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Kailash Sharma  – (25 January 2014 at 08:28)  

बहुत समसामयिक रचना...आज के यथार्थ का बहुत सुन्दर और सटीक चित्रण...गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें...

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