विवेकानन्द-महिमा
>> Sunday, 12 January 2014 –
गीत
(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
मित्रों!अपने महाकाव्य 'विवेकोर्मी' के दूसरे सर्ग के कुछ पद यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ | आप का स्वागत है |
कल या परसों पूरे महाकाव्य का प्रकाशन प्रारम्भ कर दूंगा || आप के द्वारा उस को अपना
बनाने की अपेक्षा है |
वीर विवेकानन्द जगत में ‘ज्योति’ जगाने आये थे |
‘मानवता के मूल्य’ मर चले, उन्हें जिलाने आये थे ||
‘धर्म’ निराश हुआ था, उसको आस दिलाने आये थे |
‘परमार्थ का और प्रेम का स्वरस’पिलाने आये थे ||
===================================
बंजर ‘मन की
धरा’ हो चली, ऊसर ‘चिन्तन’ हुये सभी |
सूने सूने
‘आचरणों के वन औ उपवन’ हुये सभी ||
और ‘प्रेरणा के
भ्रमरों’ के शान्त ‘गुन्जन’ हुये सभी ||
‘जन गण का
विशवास’ जगाने, ‘आशा-वसन्त’ को ले कर-
त्याग तपो मय
‘सुरभि-कणों’ से जग महकाने आये थे ||
‘मन की धरती’
पर ‘प्रज्ञा-हल’ और चलाने आये थे |
‘आशाओं के
मरुद्यान’ में, ‘सुमन’ खिलाने आये थे ||
‘आत्मतत्व के
विचार सब को, सहज दिलाने आये थे |
वीर विवेकानन्द
जगत में ‘ज्योति’ जगाने आये थे ||१||
‘पाश्चात्य संस्कृति’
का ‘दुर्दम भोगवाद’ था पनप रहा |
‘अपने लिये
संकुचित जीवन’ का विवाद था पनप रहा ||
‘खाओ पियो मज़े
लूटो’ का ‘घृणित नाद’ था पनप रहा |
जन जन में
‘तन-वर्ण-भेद’ का दुर्विवाद’ था पनप रहा ||
‘ज्ञान-दीप’ को
लिये करों में, उर में ले कर ‘प्रेम अमर’-
वे सब को ‘सभ्यता
का पावन पन्थ’ दिखाने आये थे ||
‘मानव में
परमात्म तत्व’ है, ‘मंत्र’ सिखाने आये थे |
‘कण कण में बस
एक सत्व है’, यही बताने आये थे ||
‘और एकता
मानवता है’, हमें जताने आये थे |
वीर विवेकानन्द
जगत में ‘ज्योति’ जगाने आये थे ||२||
गजब !
Loveed reading this thanks