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मुकुर (ठ)दरारें (१)टूटते व्यवहार



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आपस के व्यवहार टूटते देखे हैं |
नाते’ रिश्तेदार टूटते देखे हैं ||
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पैसों से बिक गये ‘हीर औ राँझे’ हाँ !
सपनों में दिखते ‘सोना, चाँदी, पैसा ||
इस ‘पैसे के लोभ’ के निठुर दबावों से-
क़समें खा कर, ‘प्यार’ टूटते देखे हैं ||
आपस के व्यवहार टूटते देखे हैं |
नाते’ रिश्तेदार टूटते देखे हैं ||१||

‘विश्वासों के काँटों’ में चलते राही |
बड़ी कठिन इन काँटों में आवाजाही ||
इतनी ‘चुभन’ मिली है, छलनी पाँव हुये-
रो रो हो कर ज़ार टूटते देखे हैं ||
आपस के व्यवहार टूटते देखे हैं |
नाते’ रिश्तेदार टूटते देखे हैं ||२||

‘मिलन’ की बातें सुनीं, हुये हम दीवाने |
‘उल्लासों’ से गूँथे प्रेम से पहनाने ||
बड़ी बेरहम चोट वक्त के हाथों की-
वे ‘फूलों के हार’ टूटते देखे हैं ||
आपस के व्यवहार टूटते देखे हैं |
नाते’ रिश्तेदार टूटते देखे हैं ||३||

डूब रही ‘सभ्यता-नाव’, मँझधारों में |
कई ‘मसीहा नाविक’ लगे सुधारों में ||
“प्रसून”, ‘भौतिक वित्त्वाद-तूफ़ानों’ में-
‘नावों के पतवार’ टूटते देखे हैं ||
आपस के व्यवहार टूटते देखे हैं |
नाते’ रिश्तेदार टूटते देखे हैं ||४||
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रविकर  – (13 March 2013 at 03:13)  

एक एक पंक्ति में यथार्थ है आदरणीय-
सुन्दर भाव
बढ़िया शिल्प-
शुभकामनायें-आदरणीय ||

Rajendra kumar  – (13 March 2013 at 03:43)  

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,आभार.

शिवनाथ कुमार  – (13 March 2013 at 08:37)  

ख़त्म हो रही व्यवाहरिकता और कमजोर पर रही रिश्तों को समेटे
बहुत सुन्दर रचना
सादर !

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