मौसम (ब) !धूप का स्वाद! (१) !सूर्य ने हास बिखेरा !
>> Tuesday, 26 February 2013 –
प्रतीक-रूपक गीत
प्रिय ब्लोगर मित्रों, बेटी के वैवाहिक क्रिया कलाप और लंबी शीत-जन्य बीमारी से निवृत्त हो कर आप की सेवा में पुन: क्षमा याचना सहित कल उपस्थित हूँ |इस रचना में दुखोँ की ठण्ड और सुख की गर्म धुप के संघर्ष के बाद सम शान्त बासंती धुप का स्वागत किया है |(सारे चित्र गूगल खोज से उद्धृत)
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बहुत दिनों के बाद ‘सूर्य’ ने हास बिखेरा धरती पर |
बहुत दिनों के बाद ‘धूप’ ने किया बसेरा धरती पर ||
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भीषण सर्दी फैलाने में जब मानों ‘हेमन्त’ थका |
‘अपने अनुज’ को देखा असफल, ‘शिशिर’ सहन कर नहीं सका ||
‘शीतलता के दैत्य’ बटोरे, करने उस की मदद चला-
जन को दुःख देने, सबको जन उस ने घेरा धरती पर |
बहुत दिनों के बाद ‘सूर्य’ ने हास बिखेरा धरती पर |
बहुत दिनों के बाद ‘धूप’ ने किया बसेरा धरती पर ||१||'
कई रोज़ तक ‘शिशिर’ ने ‘कोहरे का आतंक’ मचाया था |
‘मायावी छलिया’ ने ‘छल का ठण्डा खेल’ रचाया था||
‘बर्फीली बरछी ‘ से घायल, ‘ताप’ को कर, सन्ताप दिया –
‘अमन- चैन’ को लूट के पामर बना ‘लुटेरा‘ धरती पर ||
बहुत दिनों के बाद ‘सूर्य’ ने हास बिखेरा धरती पर |
बहुत दिनों के बाद ‘धूप’ ने किया बसेरा धरती पर ||२||
‘भोजन की तलाश’ में उड़ते पन्छी मर कर गिरे कई |
गलियों- खेतों में बेबस पशु ठिठुर ठिठुर कर मरे कई ||
निर्धन कुछ लाचार मर गये, ‘भूख के काँटे’ में फँस कर-
‘मौत की ब्न्छी’ ले कर आया, ‘काल मछेरा’ धरती पर-
बहुत दिनों के बाद ‘सूर्य’ ने हास बिखेरा धरती पर |
बहुत दिनों के बाद ‘धूप’ ने किया बसेरा धरती पर ||३||
‘ जाड़ा’ बन ‘शैतान’ सभी को कर के दुखी डराता था |
दिन में भी ‘रातों का काला सा साया’ मँडराता था ||
‘बसन्त की पद-चाप’ सुनी तो, बंधा ‘रोशनी’ को ढारस-
निर्भय हुआ प्रसन्न हो गया, हँसा ‘सवेरा’ धरती पर |
बहुत दिनों के बाद ‘सूर्य’ ने हास बिखेरा धरती पर |
बहुत दिनों के बाद ‘धूप’ ने किया बसेरा धरती पर ||४||
‘दृश्य अनोखा और सुहाना’ धरा पे देखा है सब ने |
फैला दिया है उजला उजला रूप इस तरह ‘मौसम’ ने ||
किसी चित्र में रँग भरने से पूर्व, धरातल रँगने को-
रंग सुनहरा ले कर आया, कोई ‘चितेरा’ धरती पर ||
बहुत दिनों के बाद ‘सूर्य’ ने हास बिखेरा धरती पर |
बहुत दिनों के बाद ‘धूप’ ने किया बसेरा धरती पर ||५||
बीता ‘समय प्रतीक्षा का’ अब जल्दी ‘बसन्त’ आएगा |
‘सौगातों की झोली’ में भर, ‘कलियाँ’-“प्रसून” लायेगा ||
बाग-बगीचों, बनों में पादप-तरु औ बेलि खिलेंगे अब-
‘घोर निराशा बीती, ‘आस’ ने, डेरा डाला धरती पर ||
बहुत दिनों के बाद ‘सूर्य’ ने हास बिखेरा धरती पर |
बहुत दिनों के बाद ‘धूप’ ने किया बसेरा धरती पर ||६||
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