अमीर वो है जिसका कोई जमीर होता है। (देवदत्त प्रसून)
>> Wednesday, 18 March 2009 –
गजल
दौलत से कहीं कोई अमीर होता है,
अमीर वो है जिसका कोई जमीर होता है।
लोहा तो लोहा है, चाहे जो बना लो,
लोहा जो पिट जाये, शमशीर होता है।
नस-नस में आग भर देता, चुभ जाये तो,
ततैया-डंक बहुत ही हकीर होता है।
जीना हराम कर दे, छीन ले दिल का चैन,
कोई काँटा जब बगलगीर होता है।
भलाई करे और खुद का पता तक न दे,
बस वही तो सच्चा, दानवीर होता है।
रावण की लंका जला दे जो ‘प्रसून’,
दिखने में छोटा सा महावीर होता है।
zabardast rachana hai ,padhakar achchha laga .
भलाई करे और खुद का पता तक न दे,
बस वही तो सच्चा, दानवीर होता है।
bahut hi sundar. badhai!!
बहुत बहुत सुन्दर बातें ... उम्दा तरीके से कविता के सांचे मे ढली .. आपकी रचना पढ़ कर खुशियों का एहसास हुवा..